Long Emotional Story Hindi: मेरी न तो शादी हुई और न हीं मेरा पति है फिर भी 2 बच्चें हैं

मेरी कहानी (Long Emotional Story Hindi): ना बारात आई, ना डोली सजी, ना दुल्हन बनी, ना सिंदूरदान हुआ। पति है, लेकिन कोई मानता नहीं। बेटा-बेटी हैं, लेकिन उन्हें पिता का नाम नहीं मिला। ना पूजा कर सकती, ना मंदिर जा सकती। मां-बाप के साथ भी ऐसा ही हुआ और बहन भी बिना शादी के ही मां बन गई।

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काश मैं भी सिंदूर लगा पाती Long Emotional Story Hindi

Long Emotional Story Hindi
काश मैं भी सिंदूर लगाती

अपनी कहानी सुनाती जबरी पहाड़िन की आंखें डबडबा जाती हैं। बेटी को गोद में लिए पति की ओर देखती हैं, फिर मौन हो जाती हैं। बहुत पूछने पर सिर झुकाए, पैर से जमीन की मिट्टी खुरचते हुए कहती हैं, ’बचपन से तमन्ना थी सज-धजकर डोली में बैठूं, दूल्हा बारात लेकर आए, सबके सामने मांग में सिंदूर भरे, लेकिन जिसे खुद पेटभर खाना नसीब नहीं, वो 25-30 हजार रुपए सिंदूरदान के लिए कहां से दे।’

जबरी पहाड़िन की इस मुस्कुराहट के पीछे गहरा दर्द छिपा है। पहला पति साथ छोड़ चुका है। दूसरे के साथ वो रहती हैं। आज भी उनके दिल में कसक है कि वह दुल्हन नहीं बन पाईं। जबरी पहाड़िन की इस मुस्कुराहट के पीछे गहरा दर्द छिपा है। पहला पति साथ छोड़ चुका है। दूसरे के साथ वो रहती हैं। आज भी उनके दिल में कसक है कि वह दुल्हन नहीं बन पाईं।

झारखण्ड के पहाड़िया जनजाति की कहानी (Long Emotional Story In Hindi)

जबरी झारखंड के गोड्डा जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पहाड़ पर बसे जामरी गांव में रहती हैं। इस गांव में सौरिया पहाड़िया जनजाति के तकरीबन 20 घर हैं, जिनमें 90 लोग रहते हैं। गांव के प्रधान को छोड़कर बाकी सभी बिना शादी के ही साथ रहते हैं।

सांवला रंग, छोटा कद, काले रंग का पेटीकोट, फिरोजी रंग का ब्लाउज और सफेद रंग का गमछा लपेटे। बेटी को गोद में लिए वे अपनी घर की ओर जाती है छोटा सा घर जिसमें सिर्फ एक दरवाजा। न खिड़की और न दराज। दरवाजा भी ऐसा की जिसमें सिर झुककर ही आ-जा सकते हैं। इसके बीचोंबीच एक कमरा, जिसमें भी सिर्फ एक दरवाजा। इसी में इनके रहने-खाने और मवेशी के लिए जगह है। वे घर की बनावट, चौका-चूल्हा और खेती-बाड़ी के बारे में बताती हैं।

जबरी के चेहरे पर शादी के सपनों के टूटने का दर्द और हालातों से समझौता करने की लाचारी साफ झलकती है। जिसे छिपाने के लिए वे मुंह फेरकर दूसरी ओर रस्सी पर टंगे फटे-पुराने कपड़ों को देखने लगती हैं।

Long Emotional Story In Hindi बच्चों का नामकरण नहीं हो रहा

जबरी अपनी भाषा में कहती है कि, ‘मैं पति बमबारी पहाड़ी के साथ रहती हूं। दो बच्चे भी हैं, लेकिन उनका नामकरण नहीं हो सका है। बेटी का कनछेदन नहीं हो पा रहा है। दिनभर खेत में काम करते हैं। जंगल से लकड़ियां चुनते हैं। सरकार से गेंहू-चावल और तेल मिल जाता है, तब जाकर हमें खाना नसीब हो पाता है। ऐसे में शादी के भोज-भात का खर्च कैसे उठाएं?


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सवाल, शादी में कितना खर्च आता है?  जवाब में जबरी कहती हैं,’ गांवभर को भोज देने में 50-60 हजार रुपए, सिंदूरदान में 25 हजार रुपए और कपड़े-गहने में भी कुछ पैसे खर्च होते हैं। कुल मिलाकर 80-90 हजार रुपए तो लग ही जाते हैं।

दहेज के रूप में लड़के वाले लड़की के घर वालों को रुपए देते हैं

सिंदूरदान के लिए 25 हजार… सवाल सुनने से पहले ही जबरी बोल पड़ती हैं- देखिए हमारे यहां लड़के वाले को लड़की के मां-बाप को सिंदूरदान से पहले पैसे देने होते हैं। उसके बिना शादी नहीं होती। इसी वजह से मेरी बहन की भी शादी नहीं हो पाई। पहाड़िया कम्युनिटी में घर की पूरी जिम्मेदारी महिलाएं ही संभालती हैं। बच्चों की देखभाल से लेकर खेती-बाड़ी तक। ये तस्वीर जामरी गांव की है, बच्चे पेड़ के नीचे खेल रहे हैं।

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आपकी उम्र कितनी है? जबरी पहले थोड़ी उलझती हैं, दिमाग पर जोर डालने की कोशिश करती हैं, फिर कहती हैं- पता नहीं। मैंने कहा- 24-25 साल या इससे बड़ी। इस पर जवाब मिलता है- हां इतनी ही। आप कब से बमबारी पहाड़ी के साथ रह रही हैं- 5 साल से। आपके बच्चों की उम्र कितनी है? बेटा 5 साल और बेटी 3 साल।

बेटा 5 साल! मेरे इन तीन शब्दों को दोहराने पर वे बताती हैं कि बेटा पहले पति का है। पहले पति से अलग क्यों हुईं, इसका जवाब देने से जबरी मना कर देती हैं। क्या पहले पति बेटे के पालन-पोषण के लिए पैसे देते हैं? जवाब मिलता है- नहीं। जब शादी ही नहीं हुई, तो भला वो पैसे क्यों देगा…

40 साल की महिला के 4 पति (Long Emotional Story Hindi)

ऐसे न जाने कितने इस गांव की महिलाएं हैं जो इस दर्द से गुजर रहीं हैं कुछ दूर आगे चलने के बाद एक और गांव मिलता है जिसका नाम चचाम गांव है इस गांव या इस क्षेत्र में पानी सबसे बड़ी चुनौती है। गांव में कोई हैंडपंप नहीं है। कुएं हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं। नदी या बरसात के गंदे पानी पीने को मजबूर हैं लोग।

चमाम गांव की 40 साल महिला जिसका नाम रूपी पहाड़िन है जो अपनी बेटी के साथ रहती हैं। वो कहती हैं कि मैं इससे पहले 3 लोगों के साथ रह चुकी हूं ये मेरा चौथा आदमी है जिसके साथ मैं रह रही हूं। रूपी कहती हैं, ‘पहले आदमी ने बच्चा न होने पर छोड़ दिया। दूसरे ने बेटा होने के बाद मर जाने पर छोड़ दिया। तीसरे को कोई और महिला पसंद आ गई। अभी जो मेरा पति है, वो चौथा आदमी है।’

जैसे टसर का कीड़ा जिस पेड़ पर पलता है, उसके सारे पत्ते खा जाता है, वैसे ही रूपी की जिंदगी की उठा-पटक ने उन्हें उम्र से पहले बूढ़ा बना दिया।

सवाल, बेटी के लिए रिश्ता आप ढूंढेंगी या बेटी खुद लड़का पसंद करेगी?  रूपी बताती हैं, ‘हमारे यहां ज्यादातर रिश्ते लड़के वालों के यहां से आते हैं। बेटी भी अपने आदमी के साथ रह रही है, उसकी अभी शादी नहीं हुई है। बेटी अभी काम करने जंगल गई है।

वे आगे बताती हैं, ‘हमारे यहां महिलाएं भोर (अलसुबह) में जागकर घर की सफाई करती हैं। वे बर्तन लेकर दूर झरने पर जाती हैं। वहां बर्तन धोती हैं और पानी भरकर लाती हैं। लौटकर खाना बनाती हैं और काम करने खेत चली जाती हैं। यहां ज्यादातर काम महिलाएं ही करती हैं। खेती में बरबट्टी, मक्का, अरहर और कुछ सब्जियां उगती हैं, जिससे हमारी गुजर बसर होती है, और पुरुष… वे मजदूरी की तलाश में दूसरे गांव जाते हैं या फिर नशा करके आराम फरमाते हैं।

ख्वाहिश और पति में किसे चुनूं (Emotional Story Hindi)

चामम गांव के हीं हाल ही बिना शादी के साथ रहने वाले जोड़ा साहिब लाल और अनीता की भी यही कहानी है साहिब लाल कहते हैं कि, ‘मैंने अनीता को देखा, तो मुझे प्यार हो गया। दोनों ने शादी करने का मन बनाया, लेकिन अपने पास इतना पैसा ही नहीं कि शादी कर सकें। हम ऐसे ही साथ रहने लगे। मैं जल्दी शादी करना चाहता हूं, ताकि पत्नी दौरे में बैठ सके।’

सवाल- दौरे क्या होता है? साहिब लाल कहते हैं- पैसे हो जाने पर कुछ लोग शादी कर लेते हैं, लेकिन इसमें भी एक अड़चन है। जिन महिलाओं के बच्चे हो जाते हैं, उन्हें शादी के वक्त दौरे यानी डलिया में नहीं बिठाया जाता। मेरी पत्नी की ख्वाहिश है दौरे में बैठकर शादी हो। इसलिए मैं पंजाब या दिल्ली कमाने जाऊंगा।

   साहिब लाल की बात सुनकर अनीता हथेलियों को भींचते हुए नीचे देखने लगती हैं। ख्वाहिश और पति से दूरी में से किसे चुनें, इसका गणित बिठाते नजर आती हैं। साहिब लाल अपनी पत्नी अनीता के साथ। साहिब लाल की तमन्ना है कि वो दूल्हा बनें और अनीता के घर बारात लेकर आएं। वे कमाने के लिए दिल्ली जाने वाले हैं।

कर्ज़ लेकर शादी होती है- गांव का प्रधान

गांव के प्रधान भी सुरेंद्र सौरिया के अनुसार, पौराणिक मान्यताओं और परंपरा को देखते हुए जब लड़की को सिंदूर लगेगा, तभी जोड़ीदार माना जाएगा। इसके बिना शादी नहीं मानी जाएगी और ना ही उसे शादी का कोई अधिकार मिलेगा। बिना शादी के साथ रहने वाली महिलाएं ना पूजा कर सकती हैं और ना उनके बच्चों का नामकरण हो सकता है और ना ही बच्चों का कनछेदन होगा।

पुराने समय में कम पैसे में शादी हो जाती थी लेकिन अब महंगाई इतनी बढ़ गई की बिना 50 हजार से 80 हजार के बीच कम से कम में शादी होना संभव नहीं है। जिन जोड़ो की शादी करनी होती है वो या तो बाहर कमाकर पैसे लाते हैं या वो गांव से जो चंदा होती है उसे कर्ज के रूप लेकर शादी करते हैं फिर धीरे धीरे चुकाते हैं।

पहाड़िया जनजाति की कैसे होती है शादी ?

पहाड़िया जनजाति की शादियां मंदिरों में नहीं होती है उनकी शादी एक जगह जहां समाज के लोग बैठते हैं वहीं शादी होती है। शादी जब तय होती है तो लड़की वाले के घर से लोग आते हैं लड़के को पसंद कर शादी की बात करते हैं, और अगर लड़का खुद लड़की पसंद करता है तब भी लड़की के परिवार वालों को बुलाकर शादी की बात करते हैं।

इसके बाद शादी लड़के वाले लड़की के घर तिलक भेजते हैं जिसमें लड़की के पूरे परिवार के लिए कपड़े, गहने, खाने-पीने का सामान और शादी की तैयारी के लिए रुपए दिए जाते हैं। नियम के तहत सौरिया पहाड़िया में 125 रुपए सिंदूरदान की रकम देनी होती है, लेकिन यह धनराशि लड़की वालों की मांग और बारात के लोगों को देखते हुए तय होती है।

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इसके बाद लड़के वाले लड़की के घर शाम को बारात लता है और रात में बारात लड़की के घर रुकता है जहां खाने पीने का इंतजाम रहता है. रात बीतने के बाद सुबह मंडप लगता है और शादी होती है, शादी होने के क्रम में लड़की एक टोकरी में बैठी (दौरा) रहती है और लड़के को इसके फूफा या जीजा गोद में उठाए रहते हैं और सभी लोग बोल श्री हरि हरि बोल के नारे लगाए जाते हैं जिसके बाद शादी संपन्न हो जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर अपने घर चले जाता है वहां जाकर पूरे गांव को भोज करता है तभी शादी पूरी होती है।

ढुकू महिला को गांव की जमीन पर दफनाने की इजाजत नहीं

जिस महिला की शादी नहीं होती उसे समाज में ढुकू कहा जाता है. इन महिलाओं की जब मृत्यु हो जाती है तो इन्हें इनके समाज द्वारा उस गांव के कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिया जाता है और यही सलूक कुछ गांव में पुरुष से साथ भी होता है।

पहाड़िया जनजाति की तरह झारखंड में कई आदिवासी कम्युनिटी के जोड़े बिना शादी के साथ रह रहे हैं। झारखंड में ऐसे जोड़ों को ढुकू कपल कहा जाता है और महिलाओं को ढुकनी। ढुकनी यानी वो महिला जो किसी के घर में दाखिल हो चुकी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक झारखंड में तकरीबन 2 लाख ऐसे जोड़े हैं।

निष्कर्ष: इन सारी महिलाओं और पुरुषों की बात सुनने के बाद मेरा मानना है की इनमें शिक्षा की कमी पुरजोर है ना समझ इतना ज्यादा है की जिसका कोई हिसाब नहीं जिसके कारण हीं इन्हें न तो अपनी चिंता है और न हीं जो बच्चे पैदा कर रहे हैं उनकी बस चिंता है तो उस समय की जो जी रहे हैं। इसी तरह के अन्य कहानी पढ़ने के लिए आप हमारे वेब पेज पर दुबारा जरूर आएं.. धन्यवाद.

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