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नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने कारण शैलपुत्री कहते हैं माता को घी से बनी प्रसाद को भोग लगाते हैं।

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नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारणी की आराधना करते हैं माता को प्रसन्न करने के लिए पञ्चामृत का भोग लगाते हैं।

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नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघाटा की पूजा करते हैं माता के ललाट पर अर्धचंद्र बनने के कारण इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। इन्हें गाय की दूध से बनी खीर को भोग लगाते हैं।

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चौथे दिन माता कुष्मांडा देवी की पूजा होती है इन्होंने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की जिसके कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। माता का भोग केला और आटे से बने मालपुआ लगते हैं।

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पांचवां दिन स्कंद माता की पूजा होती है इन्हें प्रसाद के रूप में केले से बनी कोई भी मीठी प्रसाद का भोग लगाते हैं।

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छठे दिन कात्यायन ऋषि के घर जन्म लेनी वाली पुत्री कात्यायनी की पूजा होती है इन्होंने महिषासुर का वध पान और शहद खाकर किया था इसलिए इनका भोग शहद लगाया जाता है।

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सातवां दिन माता काली की पूजा होती है रक्तबीज के संहार के लिए मां पार्वती ने कालरात्रि को उत्पन किया. इन्हें गुड से बनी प्रसाद को भोग लगाते हैं।

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नवरात्र के आठवां दिन महागौरी की पूजा होती है माता का शरीर कठोर तपस्या के कारण शरीर काला पड़ गया था जिसके बाद इन्हें गंगाजल से साफ किया गया. नारियल या सफेद प्रसाद पसंद हैं।

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नवरात्र के नवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है इस स्वरूप में सभी देवियों का एक रूप है इनको हलवा,पीढ़ी,चना आदि भोग लगाते हैं।

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नवरात्र के दसवें दिन माता की पूजा अर्चना के बाद अगले वर्ष के निमंत्रण के साथ विदाई करते हैं.